मैं जिंदगी हूँ !

कल एक झलक ज़िंदगी को देखा, वराहों पे मेरी गुनगुना रही थी,फिर ढूँढा उसे इधर उधर वो आंख मिचौली कर मुस्कुरा रही थीएक अरसे के बाद आया मुझे क़रार, वो सहला के मुझे सुला रही थीहम दोनों क्यूँ ख़फ़ा हैं एक दूसरे से मैं उसे और वो मुझे समझा रही थी,मैंने पूछ लिया- क्यों इतनाContinue reading “मैं जिंदगी हूँ !”

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