जिंदगी की इस आपाधापी में

जिंदगी की इस आपाधापी में,
कब जिंदगी की सुबह से शाम हो गई,
पता ही नहीं चला।

कल तक जिन मैदानों में खेला करते थे,
आज वो मैदान नीलाम हो गए,
पता ही नहीं चला।

कब सपनों के लिए,
सपनों का घर छोड़ दिया पता ही नहीं चला।

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